शिक्षक दिवसपर
ना हाथ मेरा पकड़,लिखवाया होता,
ना पकड़ कर कान मेरा,पढवाया होता,
ना रटाये होते पहाड़े, दहाड़े मार कर,
पत्थर फोड़ रहा होता, मैं हार कर ...
ना थपथपाई होती पीठ मेरी,
ना सराही होती प्रतिभा मेरी,
मैं वहीँ गाँव में भैंस चराते रहता
साहूकार का सूद निभाते रहता...
तुम बने ब्रह्मा मेरे,मैं हुआ सहज रचित,
विष्णुसा स्पर्श कर,रक्खा मुझे स्वयं चलित,
महेशसी तीसरी नजर, होता रहा मोह भस्मित,
परब्रह्मसे बसे मुझमे, कैसे हुआ? मैं चकित!
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