मंगळवार, ३ सप्टेंबर, २०१९

मैं किस्सों में बसता हूँ




उलझा उलझा रहता हूँ 
अफवाओं में घुलता हूँ।   

और उछालो जी भर के  
कीचड़ में ही खिलता हूँ।  

आँख कहाँ लगने वाली  
मैं सपनों से डरता हूँ। 

मौत नहीं छू पाएगी   
मैं किस्सों में बसता हूँ। .. 

हमप्यालों से क्या लेना
मैं साकी पे मरता  हूँ।     ..

एक ख़बर ऐसी भी है 
मैं ख़बरों में रहता हूँ।  

देखा उनका नंगापन 
कपडे मैं ही सिलता हूँ।  

उम्मीदों का मालपुआ 
रोज सवेरे तलता हूँ।  

सुनने वाला कोई नहीं        
खुद अपने को छलता हूँ।  

इस महफ़िल में नूर कहाँ   
आतिशीं को तरसता हूँ।  

- श्रीधर जहागिरदार 
१-९-२०१९