सोमवार, २९ ऑगस्ट, २०११

मित्र मेरे...

तुम नहीं हो फेस बुक पर मित्र मेरे ,

लेकिन यह जरुरी तो नहीं.

मात्र सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा,

तुम न रहोगे मेरे लिये कभी!


तुम्हे स्टेटस बताने की मेरी आदत नहीं

जानते हो तुम,

तुम्हारे लाइक करने ना करनेसे पड़ता फर्क नहीं

यह मानते हो तुम.


उन पलोमें तुम थे साथ मेरे,

जब खुदसे भी रहता था मैं डरा डरा.

और तब भी, जब निखरता रहा खरा खरा..

जब बनता रहा, बिगड़ता रहा,

सुलगता रहा, और लड़ता रहा,

अपने होनेकी की वजह तलाशता रहा,

अपने खोनेके कारण समझता रहा...


खामोश रहता, पर सुनते थे तुम,

ना कहकर भी कितना कहते थे तुम!

अबतक चला है यह सिलसिला,

मगर ना किया तुमने गिला,

मिलते हो कम पर मिलते हो खूब,

मित्रता गहरी निभाते हो खूब...


मित्र मेरे,

तुम नहीं हो मेरे सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा,

तुम हो मेरे जिंदगी का एक एहम किस्सा,

तुम्हे स्टेटस बताने की जरुरत नहीं

जानते हो तुम,

तुम्हारे लाइक करने ना करनेसे पड़ता फर्क नहीं

यह मानते हो तुम.

सोमवार, ४ जुलै, २०११

वय वाढते तसे



वय वाढते, तसे लहान होत रहावे
समजून उमजून.
निखळ आनंद मग लुटता येतो
संकोच सारा विसरून।

पावसात भिजत कागदी नाव
सोडता येते अलगद,
फुलपाखरा मागे धावता येते
काट्या कुट्यात धड पडत!

गवतात मनसोक्त लोळत
न्याहाळता येते आकाश,
स्वप्नाशी खेळता येते,
तरंगत सावकाश!



वय तर वाढणारच,
थोपवण नाही आपल्या हाती,
फुलपण जपू या त्याचे नको होऊ दे माती.

३० जून

तीनशे पासष्ट दिवसताला
हा खास दिवस.
जगच अस्तित्वात आले ह्या दिवशी.
आणि आपसूक जुळलेली नाती-
काका, आत्या, मामा, मावशी..
 पुढे जाणीवपूर्वक जोडली माणसे,
अस्तित्वाला अर्थ देणारी
गहिरा रंग भरणारी,
प्रेमाची, मैत्रीची, आपुलकीची..
 आता ह्या दिवशी दिशादिशातुन
गंध भरुन आणतो वारा
शुभेच्छांचा!

तीनशे
पासष्ट दिवसातला
हा खास दिवस..

गुरुवार, २४ मार्च, २०११

रंग मुझ पर चढ़ गया

 हाथ में रंग कई लेकर चला,
जोश मे ...
"रंग दूंगा हर चेहरा जो हो
होश में ..."

शहर के हर गलीकी
खाक छानी ...
होशमे हो ऐसा मिला न
एक प्राणी ...
धर्म, पैसा, वासना, सत्ता
का मद ...
कोई नशा हर एक पर
था प्रगट...

हार कर पोछा पसीना
कपाल का
रंग मुझ पर चढ़ गया
इस काल का ...

सोमवार, ३ जानेवारी, २०११

दिवार पर टंगा अब एक नया साल है

दिवारसे फिर साल एक उतर गया ,

मुठ्ठीसे रेतसा एक साल फिसल गया ।

जो कुछ चुभा हो, उसे छोड़ देना,

उस राह को इस वर्ष नया मोड़ देना।

उस साल की खुशबू दिलमें लिये

नये वर्ष में है फिर चल दिये।

हर साल रफ़्तार है और बढ़ रही,

मत सोच, था क्या गलत, क्या सही।

सोच इस वर्षका , होगा कितना अलग

तू समझ उसे और, हो जा सजग।

दिवार पर टंगा अब एक नया साल है,

अंतरमें उछला, फिर उमंगी गुलाल है॥

बुधवार, १५ डिसेंबर, २०१०

उपरती



डोळा स्वप्न पाहु नये
पहाटेचा शाप साहू नये...
वळणावरती थांबू नये
चुकामुक मग सांगू नये...
स्मितात कुठल्या फसू नये,
होउन दिवाणे बसू नये...
वचनात फसव्या गुंतू नये,
आंसुत हळव्या खंतु नये...
मिठी कुणाशी जुळवु नये,
दिठी मोकळी हरवू नये ...

सोमवार, १३ डिसेंबर, २०१०

गीत



विरल्या कुठे माझ्या फुला त्या गंध चमेली शपथा
त्या चन्द्र-खुणा, त्या भाव-खुणा, त्या दंवात भिजल्या कथा।


फुलपांखरी गीत प्रीतीचे अधरावर फुलले,
उडून अचानक तव ओठांवर अलगद जाउन झुलले,
त्या गीताचे सूर विसरली बहर वनातुन जाता ....
विरल्या कुठे माझ्या फुला त्या गंध चमेली शपथा।


चन्द्र मोकळा दिठीत आला, मिठीत कुंतल रात,
स्पर्शामधुनी वीज थरकता, झाली गंध-गहन बरसात,
त्या गंधाचे दंश अनोखे आठवतो मी आता ...
विरल्या कुठे माझ्या फुला त्या गंध चमेली शपथा।