हर साल कि तऱ्ह
फिर खिल उठा ये दिन...
खुशबू बचपनकी सोंधिसी
मन को छू रही बार बार..
फिर खिल उठा ये दिन...
खुशबू बचपनकी सोंधिसी
मन को छू रही बार बार..
माँ ने बिन कहे बनाया था हलुआ
बाबा ने लालाकी दुकानसे लाई कुल्फी...
शामको दोस्तोके साथ सिनिमा देखनेकी मिली इजाजत ..
भगवान के सामने जला दीप और
सर पर माँ बापूका हाथ ...
हर साल कि तऱ्ह
फिर खिल उठा ये दिन...
कॉलेज कैंटीन में पूरी टोली थी हाजिर
नाम से मेरे किसीने दे रखा था आर्डर
कचोडी- समोसे और क्या क्या, याद नहीं
मन जोड़ रहा था महीने के बचे दिनों का हिसाब!
और पूरी ज़िन्दगी का हिसाब जुड़ गया, जब
सहसा थाम लिया था हाथ उस कोमल हाथने...
हर साल कि तऱ्ह
फिर खिल उठा ये दिन...
मन जोड़ रहा था महीने के बचे दिनों का हिसाब!
और पूरी ज़िन्दगी का हिसाब जुड़ गया, जब
सहसा थाम लिया था हाथ उस कोमल हाथने...
हर साल कि तऱ्ह
फिर खिल उठा ये दिन...
सुबह सुबह नन्हे हाथ जगा रहे थे
"पापा पापा" की किल्गारिया
और कागज़ पर रंगों से बना स्कैच मेरा!
साथ में पूरा परिवार, हाथ में हाथ थामे,
हैपी बर्थ डे .. एक केक और ढेर प्यार ...
अगले वर्ष फिर खिल उठेगा ये दिन
कुछ नये रंग होंगे जिंदगीके लिये
तब तक अपनोके के संदेशो की सोंधी खुशबू
साथ निभाएगी!
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