दहशत भरी थी जब हवा, मैं जमींपर ही चला,
हाथ बढ़ता, साथ देता हर जगह इन्सान मिला.
हसरत थी, मैं फूल बन, महकू किसी बाग़ में,
अदनासा ख्वाब मेरा, आकर यहाँ हाँसिल मिला.
--- श्रीधर जहागिरदार
(Standard Chartered Bank से जून २०१० मे सेवा निवृत्तीपर रचित मेरे मनोभावो को उजागर करती रचना )
हाथ बढ़ता, साथ देता हर जगह इन्सान मिला.
होड़ है जीनेकी बाहर, जीनेकी मगर फुर्सत नही,
एक पल थमकर यहाँ, जीनेका था मक्सद मिला.
अदनासा ख्वाब मेरा, आकर यहाँ हाँसिल मिला.
--- श्रीधर जहागिरदार
(Standard Chartered Bank से जून २०१० मे सेवा निवृत्तीपर रचित मेरे मनोभावो को उजागर करती रचना )
After 19 years of my service with a great organisation - Standard Chartered Bank - I retired on 30th June. These were my feelings I shared on my farewell..
उत्तर द्याहटवा