शुक्रवार, ३० सप्टेंबर, २०११

जिंदगी तुम्हारा ही नाम हो गया!


जिंदगी से तो प्यार था ही!
हर पल एहसास था, जिंदगी है धरोहर,
होना मेरा, तुम्हारे लिये भरोसा इस कदर,
तभी तो, सम्हाले रखी सांस, हर चढ़ाई पर,
गिरने नहीं दिया खुद को, किसी उतराई पर.

अवसर मिले थे राह में, सोचा रुकूं कुछ पल,
था कुछ, जो खींचता मुझे, मै चलता रहा अटल.
विश्वास अडीग, तुम मुझपर करती रही,
दिशाहीनसा भटका भी, तो मुझे सहती रही.

जिंदगी से तो प्यार था ही,
तुमसे भी हो गया...

ठहराव सा अंतर में अब होता है प्रतीत,
किनारेपर मैं अचल, प्रवाह से झांकता अतीत,
बहने दो उसे, घुल जाने दो, सहज भावसे,
इन पलोंको को अब जीने दो पुरे चाव से,
तुम हो, मैं हूँ, हम है, अब प्रवाहसे थलग,
ये मेरा, ये तुम्हारा, न रहा कुछ अलग,
धरोहर नहीं, अब आजाद है जिंदगी,
ना धारा में रहेगी अब बंधी जिंदगी.

जिंदगी से तो प्यार था ही,
तुमसे भी हो गया...
जिंदगी तुम्हारा ही नाम हो गया!

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