शनिवार, १० ऑक्टोबर, २०१५

भीड़

 
आदमी का चेहरा
घुलता जा रहा है
एक भीड़ में ...
आदमखोर भीड़ में …
.
.
.
कुछ दोस्तों को खो चुका  हूँ
.
.
.
डरता हूँ
कहीं मैं भी .... 

.
.
बस अपने
नाखून काट लेता हूँ,
सुबह शाम ... 


नहीं बनना चाहता 
मैं किसी तरह 
किसी ख़बर का हिस्सा !!

- श्रीधर जहागिरदार 

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा