रविवार, २२ सप्टेंबर, २०१३

अनकही


मैंने कब कहा
बचाओ मुझे मेरी पीड़ा से,
फिर भी चले आते हो तुम
मुझे सम्हालने...

मै रो भी नहीं पाता
रिश्ते के लिहाज से....

आज फिर एक कविता
अनकही रह गई!!

- श्रीधर जहागिरदार

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