सोमवार, २९ ऑगस्ट, २०११

मित्र मेरे...

तुम नहीं हो फेस बुक पर मित्र मेरे ,

लेकिन यह जरुरी तो नहीं.

मात्र सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा,

तुम न रहोगे मेरे लिये कभी!


तुम्हे स्टेटस बताने की मेरी आदत नहीं

जानते हो तुम,

तुम्हारे लाइक करने ना करनेसे पड़ता फर्क नहीं

यह मानते हो तुम.


उन पलोमें तुम थे साथ मेरे,

जब खुदसे भी रहता था मैं डरा डरा.

और तब भी, जब निखरता रहा खरा खरा..

जब बनता रहा, बिगड़ता रहा,

सुलगता रहा, और लड़ता रहा,

अपने होनेकी की वजह तलाशता रहा,

अपने खोनेके कारण समझता रहा...


खामोश रहता, पर सुनते थे तुम,

ना कहकर भी कितना कहते थे तुम!

अबतक चला है यह सिलसिला,

मगर ना किया तुमने गिला,

मिलते हो कम पर मिलते हो खूब,

मित्रता गहरी निभाते हो खूब...


मित्र मेरे,

तुम नहीं हो मेरे सोशल नेटवर्किंग का हिस्सा,

तुम हो मेरे जिंदगी का एक एहम किस्सा,

तुम्हे स्टेटस बताने की जरुरत नहीं

जानते हो तुम,

तुम्हारे लाइक करने ना करनेसे पड़ता फर्क नहीं

यह मानते हो तुम.