शुक्रवार, ११ मार्च, २०१६

सेवक


रोज सुबह देखता हूँ 
हाथ में कुदाली लिये
चल पड़ते है 'सेवक' …
उम्मीद जागती है
कुछ नया निर्माण होने जा रहा है ...

सुनाई देती है आवाज, खुदाई की
लगातार …  केवल खुदाई की ...
खुश  हूँ नींव पड़ रही है, निर्माण की
अचानक ..  शोर शराबे के बीच
गड़े मुर्दे  निकल बैठते है,
गर्दन पर इसके उसके
फ़ैल जाती है धूल मिट्टी . ...वर्तमानपर
भविष्य निर्माण का कार्य थम जाता है
कल तक के लिए !
अफ़सोस है
इस बार भी गलत साबित हुआ मैं !
सेवकों के चयन में। ..

- श्रीधर जहागिरदार

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