गुरुवार, १० जानेवारी, २०१३

एक साल गुजर गया ...


एक साल गुजर गया, क्या कर गुजर गया?
क्या बना ? क्या मिटा? सवाल कर गुजर गया  ...
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यह रचा, वह रचा, मात्र था हल्ला मचा,
ईंट पत्थर दिखते नहीं, बवाल कर गुजर गया ...  

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कलकल करता होगा 'कल', नहीं छलेंगे कोई छल  
ऐसी आशा प्रतिदिन मेरी वो हलाल कर गुजर गया ..
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आते  जाते रहे ऋतू , छोड़ गए वे मनमें किन्तु 
कांटे साबुत टहनी पर, फूल मसल कर गुजर गया ..
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घरवालों का क्या कहना, दुश्मनों से है याराना
हासिल था जो कुछ मिला वो फिसल कर गुजर गया ....
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महफ़िल में आया सही, पर कोई शिरकत नहीं
ना किसीने था पुकारा, बस टहल कर गुजर गया ...
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रोज बदलता रहा वो बाट, खोजे नये नये थे घाट,
जहाँ भी ऊबा उसको छोड़, नई पहल कर गुजर गया  ... 
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बस, एक बूंद की खुशबू से, अंकुर फूटे धरतीसे,
दूब का कोमल स्पर्श मिले... ये खयाल कर गुजर गया ...  


- श्रीधर जहागिरदार
१०-१-२०१२











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