रविवार, २ ऑक्टोबर, २०११

जनम दिन

तीन सौ चोंसठ दिन भाग दौड़ के...
दाये-बांये, आगे-पीछे, ऊपर-नीचे,
लगातार मची जानलेवा होड़ के...

हर कोई नचा रहा है ..
और नाच रहा है हर कोई,
हर तरह, हर जगह
घर पर, दफ्तरमें, सड़क पर...

"ये दो! वो लाओ!"
"अब तक क्यों नहीं हुआ?"
"ये ठीक नहीं, चेंज करो,
कल सुबह तक मेल करो!"
"गाड़ी आगे लो, जरा पीछे लो,
ठीक से चला नहीं सकते?"
"आप का लोन डिफ़ॉल्ट में है,
टैक्स का केस कोर्ट मे है"

साल में तीन सौ चोंसठ दिन
होते है, भीड़ साथ होते हुए
अकेलापन समेटे हुए....

साल में होता है एक और दिन
तीन सौ पैसठवा ...
खुशनुमा सुबह, चहचहाते पंछी,
घर के दरवाजे पर दस्तक देता
महकते फुलोंका गुलदस्ता
" डार्लिंग विथ लव"
फ्रिज पर रक्खा हाथसे बना
"हैप्पी बर्थ डे" कार्ड
दफ्तर में मुस्कराते चेहेरे
गाते गुनगुनाते
अपनी पसंद का केक
चेहरेपर मलते यार-दोस्त
इन बॉक्स में रंगबिरंगे मेल...

यही होता है वह दिन
अपने होने को सार्थक करता
तीन सौ चौसठ दिन की भागमभागमें
जीवन के सरगम सुनाता
बेतहाशा भीड़ में हमदम तलाशता
साल भर आपाधापी में मकसद तराशता!

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